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एक गुजारिश ही तो थी शायद तुमसे हाँ बस एक गुजारिश, बहुत कुछ नही माँगा था तुमसे मैंने, बस कुछ ख्वाब कुछ ख्वाहिशे ही तो उधार मांगी थी, थोड़े से मेरे अहसास थोड़ी सी मेरी तलब तुमसे इश्क कर लेने की बस इतना ही तो माँगा था , वो भी नकद नही उधार , तुम वो भी न दे सकी ,, शायद तुम्हे मेरी वो तलब नही दिखाए पड़ी जो सिर्फ तुम्हारे लिए थी ,,,क्या तुम जानती थी की तुमसे कोई इतना प्यार कैसे कर सकता है , कोई कैसे सिर्फ और सिर्फ तुम्हे अपनी तलब बना सकता है !
तुम्हे पाने से ज्यदा तुम्हे खो देने से डरता था मै , पल पल तुम्हे सोचने से ज्यदा तुम्हारा हो जाने से डरता था मै, बेहिसाब सा मेरा ये डर बस एक बहाना भर था तुम्हे महफूज़ देखने का , क्या करू एक तलब सी जो छा गये थी बस तुमसे इश्क करने की, ,, क्या तुम्हे अहसास भर भी था की कोई तुमसे यूँ इस तरह प्यार कर सकता है !
नहीं ये इत्तेफाक बिलकुल नही था , और न ही ये कोई हिसाब था , मेरे लिए तो बिलकुल भी नही, थी तो बस तलब एक सच्ची वाली तलब जो बस तुम्ही से हो गयी थी यार ,,……….
to be continued,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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